श्री माधवदास जी का जीवन चरित्र spiritual kahaniya in hindi
श्री माधवदास जी का जीवन चरित्र spiritual kahaniya in hindi
दोस्तो आपका स्वागत है आपके अपने ब्लॉग spritual kahaniya में और मैं आपका दोस्त मुंगेरी ढालिया।
दोस्तो आज हम भक्त शिरोमणि माधवदास जी के बारे में बात करेंगे। इनको वेदव्यास जी का अवतार भी मन जाता था क्योंकि इन्होंने सभी गर्न्थो का भाषानुवाद किया था ।इनकी रचनाओं को गाने से प्राणी इस भवसागर से पर हो जाता है ।
माधवदास जी का जीवन चरित्र
माधवदास जी एक ब्राह्मण थे ।इनकी पत्नी के स्वर्गवास होने पर इनको ज्ञान हो गया कि इस संसार मे सभी अकेले आये है और अकेले जाएंगे ।ये भगवान जगन्नाथ जी के परम भक्त थे।पत्नी के मरने के बाद इन्होंने अपने घर छोड़ दिया और नीलाचल चले गए ।
वहां पर वे श्री जगन्नाथ जी के ध्यान में इतने मगन हो गए कि इन्होंने भूख प्यास की परवाह भी नही की। जब इन्होंने तीन दिनों तक कुछ नही खाया तो जगन्नाथ जी को इनकी चिंता हुई ।और उन्होंने अपना लगा भोग लक्ष्मी जी के हाथों उनके द्वार पर रखवा दिया । जगन्नाथ जी के प्रशाद को देखकर उनका मन प्रसन्न हो गया और उन्होंने वो प्रशाद ग्रहण कर लिया ।जब मंदिर के पुजारी ने मंदिर के दरवाजे को खोल कर देखा तो वहाँ पर प्रशाद नही देखा ।तो उनको लगा कि किसी ने ये प्रशाद चुरा लिया है।
फिर उन्होंने सभी जगहों पर ढूंढा ।उस प्रशाद की थाली को जब उन्होंने माधवदास जी के पास देखा तो उन्हें ये लगा कि ये प्रशाद माधवदास जी ने ही चुरा कर खा लिया है । फिर उन लोगो ने माधवदास जी को बांध दिया और बेंत से उनको बहुत मारा। और श्री जगन्नाथ जी को स्नान कराने चले गए जब वे उनको स्न्नान करवा रहे थे। तो उनके विग्रह पर बेंत के निशान उपडे देखे ।और जगन्नाथ जी ने कहा कि माधवदास ने ये खाना नही चुराया ।मैंने ये उसको दिया ।इसीलिए उसने ये भोजन ग्रहण किया ।फिर उन सबको उनकी भक्ति की शक्ति का पता चला।और उनसे क्षमा मांगने को उनके पास गए और उनसे क्षमा मांग कर पूरी बात बताई।उनकी बात सुनते ही माधवदास जी बहुत रोये और कहने लगे कि मेरे कारण भगवान को कितना कष्ट हुआ ।उनकी भक्ति और भगवान के प्रति प्रेम को देखकर सभी ने उनके चरणों मे शीश झुकाया ।
दोस्तो माधवदास जी के जीवन की और भी बहुत चरित्र है।
जिनका मैं आगे वर्णन करूँगा ।
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धन्यवाद
फिर उन्होंने सभी जगहों पर ढूंढा ।उस प्रशाद की थाली को जब उन्होंने माधवदास जी के पास देखा तो उन्हें ये लगा कि ये प्रशाद माधवदास जी ने ही चुरा कर खा लिया है । फिर उन लोगो ने माधवदास जी को बांध दिया और बेंत से उनको बहुत मारा। और श्री जगन्नाथ जी को स्नान कराने चले गए जब वे उनको स्न्नान करवा रहे थे। तो उनके विग्रह पर बेंत के निशान उपडे देखे ।और जगन्नाथ जी ने कहा कि माधवदास ने ये खाना नही चुराया ।मैंने ये उसको दिया ।इसीलिए उसने ये भोजन ग्रहण किया ।फिर उन सबको उनकी भक्ति की शक्ति का पता चला।और उनसे क्षमा मांगने को उनके पास गए और उनसे क्षमा मांग कर पूरी बात बताई।उनकी बात सुनते ही माधवदास जी बहुत रोये और कहने लगे कि मेरे कारण भगवान को कितना कष्ट हुआ ।उनकी भक्ति और भगवान के प्रति प्रेम को देखकर सभी ने उनके चरणों मे शीश झुकाया ।
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