जब कृष्ण ने युधिष्ठिर की प्राण रक्षा की। spiritual stories in hindi

  • जब कृष्ण ने युधिष्ठिर की प्राण रक्षा की। spiritual stories in hindi

दोस्तो आपका स्वागत है आपके अपने spritual kahaniya में और मैं हु आपका दोस्त मुंगेरी ढालिया।
दोस्तो पतिव्रता द्रोपती की महिमा का वर्णन शब्दो मे करना बहुत ही कठिन है ।आप तो जानते है ,जब दुष्ट दुःशासन ने द्रौपदी का भरी सभा मे वस्त्र हरण करने का प्रयास किया तो कोई भी उनकी सहायता के लिए आगे नही आया उसने सब से प्रार्थना की पर किसी ने भी उनकी मदद नही की ।यहाँ तक कि उनके पति ने भी उनकी सहायता नही की ।जब द्रोपदी सबसे विनती करके हार गई तब अंत मे उन्होंने श्री कृष्ण से प्रार्थना की तो श्री कृष्ण द्वारका से उसी क्षण दौड़े आये और द्रोपदी की रक्षा की इस प्रकार कई बार श्री कृष्ण ने पांडवो की रक्षा की थी।दोस्तो एक बार की बात है पांडव जब वन में रह रहे थे ।तब उनके कुटिया में दुर्वासा जी आये और युधिष्ठिर जी से कहा कि आप हमारे भोजन की व्यवस्था करो ।आज हम और हमारे शिष्य यहीं भोजन करेंगे ।युधिष्ठिर ने कहा आप स्नान करके आईये मैं अभी भोजन की व्यवस्था करवाता हु ।
दुर्वासा जी और उनके शिष्य स्नान करने चले गए ।और युधिष्ठिर जी द्रोपदी जी के पास गए और उनसे कहा कि ऋषि दुर्वासा आये है वे और उनके शिष्य आज यही भोजन करेंगे।
द्रोपदी जी ने खाली बर्तन दिखाते हुए कहा कि आज भोजन नही है ।ये सुनते ही युधिष्ठिर जी को चिंता हो गयी कि हमारे घर से साधु खाली पेट जायेगे ।ये नही हो सकता ।ये होने से पहले मैं अपने प्राण त्याग दूंगा ।कि तभी द्रोपदी जी ने उनको
कहा कि हम श्री कृष्ण जी से प्रार्थना करते है वे हमारी मदद जरूर करेंगे।


और उन्होंने श्री कृष्ण जी से प्रार्थना की की तभी वहां पर श्री कृष्ण जी प्रकट हो गए और द्रोपदी जी से कहा कि मुझे भूख लग रही है ।मुझे कुछ भोजन कराओ ।तब द्रोपदी जी ने कहा कि हे केशव आज भोजन समाप्त हो गया है।तब श्री कृष्ण जी ने कहा कि जो पूरे संसार को भोजन करा सकती है ।उनके घर मे भोजन नही ।दोस्तो ये बात कृष्ण जी ने ऐसे ही नही कहि वे वास्तव में पूरे संसार को भोजन कर सकती थी ।क्योंकि उनके पास एक पात्र था जिसमे कभी भी भोजन समाप्त नही होता वो जो चाहे वो भोजन उस पात्र में से प्राप्त कर सकती थी ।लेकिन सब के भोजन करने के बाद जब वे उन पात्र को साफ करके रख देती थी तो उसमें से बाद में कुछ भी भोजन प्राप्त नही होता था ।और रोज की तरह पांडवो ने भोजन कर लिया था और द्रोपदी ने उसे साफ करके रख दिया था। लेकिन कृष्ण जी के कहने पर वे उस पात्र को श्री कृष्ण के पास लायी ।उस पात्र में किसी किनारे पर एक पत्ता शाक का चिपका हुआ था। कृष्ण जी ने वो पत्ता खाया और पानी पी लिया ।उनके ऐसा करते ही पूरे संसार की भूख मिट गई ।दुर्वासा जी और उनके शिष्यों की भी भूख मिट गई और वे वहाँ से चले गए।
इस प्रकार श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर जी के प्राणों की रक्षा की।
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                                 धन्यवाद

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