लक्ष्मण जी और रामजी मेघनाद के नागपाश मूर्छित क्यो हुए थे?Spiritual short story in hindi soch

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Spiritual stories in hindi soch

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  लक्ष्मण जी और रामजी मेघनाद के नागपाश मूर्छित क्यो हुए थे जब कि वह तो स्वयं नारायण थे?
 हेलो दोस्तो आपका स्वागत है Spiritual short story in hindi soch में और मैं हु आपका दोस्त मूूगेरी ढालिया।
दोस्तो बहुत से लोगो के मन मे ये सवाल होता है कि राम जी तो भगवान थे तो जब इंद्रजीत ने उनको और लक्ष्मण जी को नाग पाश में बाँधा था तो वो मूर्छित क्यो रहे।
 मैं इसको थोड़ा समझाने का प्रयास करूंगा ।मैं कोई ज्यादा ज्ञानी तो नही हु पर जितना मुझे मालूम है ।
उतना मैं बताने का प्रयास करूंगा।

गरुड़ जी का मोह

     जब रावण और राम जी के युद्ध की शुरुआत हुई तो राम जी की सेना ने रावण के बहुत से योद्धाओ को यमपुरी भेज दिया और रावण को भी भगवान ने जीवन दान दिया।
महाबली कुम्भकर्ण भी मारा गया तब मेघनाद युद्ध भूमि पर आया और बहुत ही भयंकर युद्ध करने लगा।
उसको रोकने लक्ष्मण आये पर वो मायावी युद्ध करने लगा।तब राम भी उसकी सहायता करने पहूंचे।
तब मेघनाद ने नाग पाश का प्रयोग कर राम जी और लक्ष्मण जी को उसमे बांध दिया और वहाँ से चला गया और अपनी जीत का बिगुल बजवाने लगा।
राम जी की सेना में मायूसी छा गई। कोई भी इसका उपाय करने में असमर्थ था।तब हनुमानजी गरुड़ जी के पास गए और उनको सारि बात बताई।
गरुड़ जी उनके साथ चल पड़े  और धरती लोक पर प्रभु श्रीराम जी और लक्ष्मण जी को नाग पाश से मुक्त किया।
फिर वो वैकुण्ठ वापिस चले गए।
 लेकिन एक बात का उनके मन मे मोह हो गया कि अगर वो परमपिता परमेश्वर है तो जिस नाग पाश को मैने आसानी से काट दिया ।
उसको वो सर्वेश्वर नही काट पाए।ऐसा कैसे हो सकता है।
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काग भुशुण्डि जी का गरुड़ का मोह तोड़ना

 गरुड़ जी इस बात के समाधान के लिए सभी देवों के पास गए पर कोई भी उनकी शंका का समाधान नही कर पाया ।
अंत मे वो शिवजी के पास गए।शिवजी ने कहा कि आपकी समस्या का समाधान काग भुशुण्डि जी के पास मिलेगा।
फिर वो काग भुशुण्डि जी के पास गए ।जब वे काग भुशुण्डि जी के पास गए ।
तो उन्होंने कहा कि मैं आपकी स्तिथि समझ सकता हु। 
मुझे भी ये मोह हुआ था।जब राम जी का प्राकट्य हुआ तब सभी देव उनके दर्शन को गए थे।
मैं भी उनके दर्शन करने गया। मैं जब उनके पास गया तो वो खेल रहे थे ।
तो मैं भी उनके साथ खेलने लगा ।जब मैंने उनके पास पड़ा खिलौना लिया तब वे रोने लगे। 
मैंने मन मे ये सोचा कि ये एक खिलोने के लिये रो रहे है।ये भगवान कैसे हो सकते है।
तब मैं उनका खिलौना लेकर उड़ गया। तो उन्होंने अपना हाथ मेरी तरफ बढ़ाना शुरू कर दिया। 
मैं जहाँ जहाँ गया उनका हाथ उतना ही बढ़ता गया और मेरा पीछा करता रहा। 
मैं तीनो लोको में गया और मेरे पीछे पीछे उनका हाथ भी वही पहुंच जाता। 
मैं हार कर वापिस अयोध्या पहुंचा और प्रभु श्री राम का खिलौना उनको वापिस दिया।
तब उन्होंने अपने चतुर्भुज रूप में मुझे दर्शन दिए और अविचल भक्ति का वरदान दिया।
फिर काग भुशुण्डि जी ने गरुड़ जीी कहा कि वे इस प्रकार की लीला करते रहते है। तब गरुड़ जी का मोह टूटा और उनको समझ मे आया कि प्रभु राम जी मानव रूप में लीलाये करते रहते है और ये भी उनकी एक लीला ही थी।

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