Bhakt haripal ki kahani story of bhakt haripal in hindi spiritual kahaniya

Bhakt haripal ki kahani story of bhakt haripal spiritual kahaniya

हेलो दोस्तो आपका स्वागत है आपके अपने spritual kahaniya पर और मैं हु आपका दोस्त
 मुंगेरी ढालिया ।दोस्तों हमारे शास्त्रों में चोरी करना अपराध बताया गया है ।लेकिन आज हम एक ऐसे भक्त के बारे में जानेंगे ।जो चोरी करके भगवान की सेवा करता था ।तो चलिए
शुरू करते है ।
दोस्तो एक गांव था वहां पर एक भक्त था उसका नाम हरिपाल था वो शुद्ध भक्त था और उसने ये प्रण किया था कि वह एक भक्ता से ही विवाह करेंगे ।वही एक लड़की ने भी ये प्रण ले रखा था किवो भी एक भक्त से विवाह करेगी और वो भी इस भक्त जो रोज एक हजार भक्तो को भोजन कराता हो ।
ये बात हरिपाल ने सुनी और ये सोच लिया कि मैं इसी के साथ विवाह करूँगा ।और रोज एक हजार भक्तो को भोजन कराऊंगा ।
और वो रोज एक हजार लोगों को भोजन करवाने लगा ये देख कर उस युवती ने भक्त हरिपाल से विवाह कर लिया ।हरिपाल बहुत ही धनवान था ।
लेकिन वो भक्तो की सेवा में ही रहता इसलिए कोई काम नही करता  था ।इसलिए धीरे धीरे उसका धन समाप्त होने लगा ।जब उसका धन समाप्त हो गया ।तो उसने अपने जमीन बेच दी ।और उससे वो ब्राह्मणों की भोजन करने लगा  फिर वो धन भी खत्म हो गया ।तो लोगो से उधार मांग कर भी वो भोजन कराता था।फिर लोगो ने उसको उधार देना बंद कर दिया। लेकिन उसने सोचा कि सेवा तो करनी ही है ।इसलिए वो लोगो के घर चोरी करने लगा ।पर वो उनके घर ही चोरी करता था जिनके पास धन अधिक होता था पर वो उस धन को धर्म कार्य मे इस्तेमाल नही करते थे ।और वो केवल आटा दाल चावल आदि खाने की वस्तुओं को ही चुराता था ।
एक दिन इसी तरह वो रात को चोरी करने  एक घर पर गया तो उसने वहां पर बहुत खाने का सामान एक चादर में भरा और वहां से जाने लगा कि तभी उस घर के बेटे ने अपने पिता से कहा कि कुछ आवाजे आ रही है लगता है कोई चोर आया है ।तब उसके पिता ने कहा बेटा अपने घर पर भक्त हरिपाल जी आये है ।भक्तो की सेवा के लिए सामान ले जाने आज मेरा घर पावन हो गया जो भक्त हरिपाल जी के कदम मेरे घर पर पड़े ये बाते हरिपाल जी ने सुन ली और उसे पता कि ये एक वैष्णव का घर है ।मैं यहां पर चोरी नही कर सकता ।
फिर वो सारा सामान वही छोड़कर चला जाता है ।अगले दिन वही सेठ उसको दुगना सामान उसे देकर चला जाता है ।
एक बार दिन में हजारों की संख्या में कुछ ब्राह्मण आते है ।तो हरिपाल जी उन्हें आसन देते है और जल पान देते है ।
फिर अपनी पत्नी को पूछते है कि कुछ है क्या पत्नी कहती है  ।कि आज कुछ भी नही है।
तो उसको चिंता हो जाती है कि इनको भोजन कैसे कराऊँ ।
क्योकि अगर रात होती तो मैं चोरी करके ले आता दिन में क्या करूँ।
उसने सोचा अब दिन में चोरी करनी पड़ेगी। फिर वो महात्माओ को बोलता है कि मैं अभी आपके भोजन का प्रबंध करके आता हूं ।और अपनी लाठी उठता है और रास्ते के बीचो बीच खड़ा हो जाता है ।ये सब देखकर भगवान कृष्ण एक सेठ कारूप बनाते है और उसके पास जाने लगते है तब रुक्मनीदेवी पूछती है कि कहा जा रहे हो तो वो कहते है कि एक भक्त से मिलने ।
रुक्मिणी जी कहती है कि मैं भी आपके साथ जाउंगी तो वो दोनों एक सेठ और सेठानी का रूप लेकर उसी रास्ते से जाते है जहाँ हरिपाल खड़ा होता है और उनको रास्ते मे रोककर सारा धन देनी के लिए कहता है तब भगवान अपना सारा धन उसके सामने रख देते है ।फिर हरिपाल सेठानी को भी अपने जेवर देने को कहता है। तो रुक्मिणी को क्रोध आने लगता है ।तो रुक्मिणी को क्रोध आता देख कर भगवान सोचते है कि कही ये इन्हें श्राप न देदे ।इसलिए भगवान अपने असली रूप में आ जाते है।
उनको देखकर हरिपाल जोर जोर से रोने लगता है ।और भगवान को अपने साथ घर चलने को कहता है ।और अपनी पत्नी को भी भगवान के दर्शन करवा देता है ।
दोस्तो आपको ये कहानी कैसी लगी कॉमेंट करे अगर अच्छी लगे तो शेयर करे ।
                      धन्यवाद


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