महाराजा अम्बरीष की कहानी spiritual stories in hindi
महाराजा अम्बरीष की कहानी spiritual stories in hindi
दोस्तो आपका स्वागत है आपके अपने spritual kahaniya में और मैं हु आपका दोस्त मुंगेरी ढालिया ।
दोस्तो आज हम आपको महाराजा अम्बरीष की कहानी सुनाएंगे ।जिनकी रक्षा में भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र रहता था ।दोस्तो इस कहानी में हमे पता चलेगा कि कभी किसी भक्त का निरादर नही करना चाहिए ।क्योंकि साधारण सा दिखने वाला भक्त भी भगवान को अति प्रिय हो सकता है ।तो चलिए दोस्तो शुरू करते है ।
एक बार एक राजा था उनका नाम अम्बरीष था ।वो परम् वैष्णव था ।एक बार की बात है ।एकादशी के उपवास का पर्व था ।राजा अम्बरीष ने एकादशी के दिन उपवास किया और द्वादशी को उसका पारण करने के लिए ऋषियो को बुलाया था ।तभी वहां पर महर्षि दुर्वासा आये राजा ने उनकी आवभगत की और पारण करने को कहा ।दुर्वासा जी ने कहा कि मैं स्नान करके आता हूं ।लेकिन उनको बहुत देर होने लगी थी और पारण का समय जा रहा था तब सभी ऋषियो ने राजा से पारण करने को कहा ।राजा ने भगवान के चरणामृत से पारण कर लिया ।तभी दुर्वासा ऋषि वहा आये और उन्होंने देखा कि राजा ने पारण कर लिया है। तब दुर्वासा ऋषि क्रोधित हो गए ।राजा अम्बरीष ने उनको बताया कि पारण का समय जा रहा था इसलिए मैंने चरणामृत लिया है ।लेकिन वे नही माने और अपनी जटा निकाल कर कृत्या को प्रकट किया ।ये सब देखकर सुदर्शन को क्रोध आ गया और उसने उस कृत्या को नष्ट कर दिया ।और दुर्वासा ऋषि को नष्ट करने के लिए उनके पीछे पड़ गया सुदर्शन को आता देख कर दुर्वासा ऋषि डर गए ।और वहा से भाग गए और वे सभी लोकपालों के पास गए पर किसी ने उनकी सहायता नही की ।फिर वे शिव शंकर के पास गए पर उन्होंने भी सहायता करने से मना कर दिया फिर वे भगवान विष्णु के पास गए और उनको कहा कि हे प्रभु आप अपनी शरण मे आये हुए की रक्षा करते हो ।मैं आपकी शरण मे हु आपका सुदर्शन चक्र मेरे पीछे है ।कृपया मेरी रक्षा करे तब भगवान विष्णु ने कहा कि मैं आपकी रक्षा नही कर सकता ।क्योंकि मैं मेरे भक्तो के अधीन हु । आप राजा अम्बरीष की शरण मे जाओ वे ही तुम्हारी रक्षा करेंगे ।
फिर वे राजा अम्बरीष की शरण मे गए तो राजा ने सुदर्शन से शांत होने की प्रार्थना की ।सुदर्शन शान्त हुए और दुर्वासा ऋषि की रक्षा हुई।
दोस्तो आज हम आपको महाराजा अम्बरीष की कहानी सुनाएंगे ।जिनकी रक्षा में भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र रहता था ।दोस्तो इस कहानी में हमे पता चलेगा कि कभी किसी भक्त का निरादर नही करना चाहिए ।क्योंकि साधारण सा दिखने वाला भक्त भी भगवान को अति प्रिय हो सकता है ।तो चलिए दोस्तो शुरू करते है ।
एक बार एक राजा था उनका नाम अम्बरीष था ।वो परम् वैष्णव था ।एक बार की बात है ।एकादशी के उपवास का पर्व था ।राजा अम्बरीष ने एकादशी के दिन उपवास किया और द्वादशी को उसका पारण करने के लिए ऋषियो को बुलाया था ।तभी वहां पर महर्षि दुर्वासा आये राजा ने उनकी आवभगत की और पारण करने को कहा ।दुर्वासा जी ने कहा कि मैं स्नान करके आता हूं ।लेकिन उनको बहुत देर होने लगी थी और पारण का समय जा रहा था तब सभी ऋषियो ने राजा से पारण करने को कहा ।राजा ने भगवान के चरणामृत से पारण कर लिया ।तभी दुर्वासा ऋषि वहा आये और उन्होंने देखा कि राजा ने पारण कर लिया है। तब दुर्वासा ऋषि क्रोधित हो गए ।राजा अम्बरीष ने उनको बताया कि पारण का समय जा रहा था इसलिए मैंने चरणामृत लिया है ।लेकिन वे नही माने और अपनी जटा निकाल कर कृत्या को प्रकट किया ।ये सब देखकर सुदर्शन को क्रोध आ गया और उसने उस कृत्या को नष्ट कर दिया ।और दुर्वासा ऋषि को नष्ट करने के लिए उनके पीछे पड़ गया सुदर्शन को आता देख कर दुर्वासा ऋषि डर गए ।और वहा से भाग गए और वे सभी लोकपालों के पास गए पर किसी ने उनकी सहायता नही की ।फिर वे शिव शंकर के पास गए पर उन्होंने भी सहायता करने से मना कर दिया फिर वे भगवान विष्णु के पास गए और उनको कहा कि हे प्रभु आप अपनी शरण मे आये हुए की रक्षा करते हो ।मैं आपकी शरण मे हु आपका सुदर्शन चक्र मेरे पीछे है ।कृपया मेरी रक्षा करे तब भगवान विष्णु ने कहा कि मैं आपकी रक्षा नही कर सकता ।क्योंकि मैं मेरे भक्तो के अधीन हु । आप राजा अम्बरीष की शरण मे जाओ वे ही तुम्हारी रक्षा करेंगे ।
फिर वे राजा अम्बरीष की शरण मे गए तो राजा ने सुदर्शन से शांत होने की प्रार्थना की ।सुदर्शन शान्त हुए और दुर्वासा ऋषि की रक्षा हुई।
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