द्रुपद कोन था ? Spiritual short story in hindi soch
Spiritual short story in hindi soch
तब सभी कौरव द्रुपद को हराने के लिए गए।पर वो द्रुपद से हारकर वापिस आ गए।
फिर द्रोणाचार्य ने पांडवो को आज्ञा दी कि वो द्रुपद को हराकर मेरे चरणों मे लेकर आओ।
तब ये पांचो भाई युद्ध करने निकल पड़े।
लेकिन द्रुपद को हराना आसान नही था। लेकिन उन्होंने द्रुपद को हराकर अपने गुरु के चरणों मे झुका दिया।
द्रुपद ने कहा कि अब मेरा राज्य आपका है।फिर द्रोणाचार्य जी ने उसको उसका राज्य वापिस कर दिया और उसको छोड़ दिया।
तब पांडवो ने आश्चर्य से पूछा कि आपने पहले तो उसका राज्य हमसे गुरु दक्षिणा में मांगा फिर अपने द्रुपद को उसका राज्य वापिस दे दिया।ये क्या रहस्य है हमे बताइये।
तब गुरु द्रोणाचार्य ने कहा कि द्रुपद और मैं बाल सखा है हमने शिक्षा एक ही गुरु कुल में प्राप्त की थी।
उस समय द्रुपद ने मुझको वचन दिया था कि वो जब वो बड़े होंगे तो मुझे अपना आधा राज्य दे देंगे।
जब हम बड़े हुए तब वो पांचाल का राजा बन गया और मैं बहुत ही गरीब था। मैं मेरी पत्नी और मेरे बच्चे को कई बार भर पेट भोजन भी नही मिलता था।
एक बार जब अश्वथामा छोटा था तब उसने दूध के लिए कहा।लेकिन हमारे पास कोई गाय नही थी।
लेकिन मेरी पत्नी ने पानी मे चावल पीस कर उसको पिला दिया।
ये सब मुझसे देखा न गया और मैं अपने मित्र द्रुपद के पास गया और उससे सहायता के लिए कहा।मैंने उसका दिया वचन उसको याद कराया और कहा कि मुझे राज्य नही चाहिए ।
मुझे बस एक गाय दे दो ।लेकिन उसने मुझे वहाँ से निकाल दिया।
फिर मैंने अपने बच्चे के लिए अपनी विद्या की बेचने का पाप किया और यहाँ आ गया और तुमको शिक्षा देने लगा।
द्रुपद कोन था और द्रोणाचार्य ने पांडवो से गुरुदक्षिणा में उसका राज्य क्यो मांगा?
द्रुपद कोन था और द्रोणाचार्य ने पांडवो से गुरुदक्षिणा में उसका राज्य क्यो मांगा? |
Spiritual short story in hindi soch
द्रुपद कोन था और द्रोणाचार्य ने पांडवो से गुरुदक्षिणा में उसका राज्य क्यो मांगा?
जब पांडवो और कौरवों ने अपनी शिक्षा पूरी कर ली तब सभी ने गुरुदेव से गुरू दक्षिणा मांगने को कहा।तब गुरु द्रोणाचार्य ने ने सभी से द्रुपद को हराकर उसके चरणों मे लाने को कहा।तब सभी कौरव द्रुपद को हराने के लिए गए।पर वो द्रुपद से हारकर वापिस आ गए।
फिर द्रोणाचार्य ने पांडवो को आज्ञा दी कि वो द्रुपद को हराकर मेरे चरणों मे लेकर आओ।
तब ये पांचो भाई युद्ध करने निकल पड़े।
लेकिन द्रुपद को हराना आसान नही था। लेकिन उन्होंने द्रुपद को हराकर अपने गुरु के चरणों मे झुका दिया।
द्रुपद ने कहा कि अब मेरा राज्य आपका है।फिर द्रोणाचार्य जी ने उसको उसका राज्य वापिस कर दिया और उसको छोड़ दिया।
तब पांडवो ने आश्चर्य से पूछा कि आपने पहले तो उसका राज्य हमसे गुरु दक्षिणा में मांगा फिर अपने द्रुपद को उसका राज्य वापिस दे दिया।ये क्या रहस्य है हमे बताइये।
तब गुरु द्रोणाचार्य ने कहा कि द्रुपद और मैं बाल सखा है हमने शिक्षा एक ही गुरु कुल में प्राप्त की थी।
उस समय द्रुपद ने मुझको वचन दिया था कि वो जब वो बड़े होंगे तो मुझे अपना आधा राज्य दे देंगे।
जब हम बड़े हुए तब वो पांचाल का राजा बन गया और मैं बहुत ही गरीब था। मैं मेरी पत्नी और मेरे बच्चे को कई बार भर पेट भोजन भी नही मिलता था।
एक बार जब अश्वथामा छोटा था तब उसने दूध के लिए कहा।लेकिन हमारे पास कोई गाय नही थी।
लेकिन मेरी पत्नी ने पानी मे चावल पीस कर उसको पिला दिया।
ये सब मुझसे देखा न गया और मैं अपने मित्र द्रुपद के पास गया और उससे सहायता के लिए कहा।मैंने उसका दिया वचन उसको याद कराया और कहा कि मुझे राज्य नही चाहिए ।
मुझे बस एक गाय दे दो ।लेकिन उसने मुझे वहाँ से निकाल दिया।
फिर मैंने अपने बच्चे के लिए अपनी विद्या की बेचने का पाप किया और यहाँ आ गया और तुमको शिक्षा देने लगा।
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